कवि,साहित्यकार,पत्रकार,संपादक (करन बहादुर)
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नापा तौला देखा परखा ,
जांचा और सराहा खूब |
कितने भाव कहाँ गहरे हैं ,
किसने कितना पाया डूब ||
उथल पुथल की ठंडी बस्ती ,
घर की गाजर मूली सस्ती |
यही दही की मटकी समझो ,
झटका और उछाला खूब ||
लगा दिया घर द्वारे ताला ,
किसकी मकड़ी किसका जाला |
तुमने पूछा तो बोला मन ,
मन का मोती पाया खूब ||
लूटा और लुटाया उसने ,
भारी मार लगाया उसने |
गरियाया भी मद्धिम मद्धिम ,
भरि के बाहर लाया खूब ||
रोग शोक की चिंता छोड़ी ,
घर के आगे पीछे घोड़ी |
ज्यों अड़ियल सा बैल कहे कुछ ,
कर ले खेती खुद में डूब ||
रब में सब है सब में रब है ,
अब है तब है कब है जब है |
परिचय अपना पास देख तो ,
पाये सब ही भाये खूब ||
करन बहादुर (नोयडा) 09717617357
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