कवि,साहित्यकार,पत्रकार,संपादक (करन बहादुर)
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आँख मूंद तो भव्य समागम
अपना मन यह अपनापन
सपना बनकर देख रहे सब
अपना बनकर लेख रहे सब
कुछ कह देते तो हम पढ़ते
अपनी नाव आप हम मढ़ते
करते कुछ दुस्साहस उनसे
उनके बीच बचाव झगड़ते
धरम धरनि यह रीत हमारी
हमसे तुमसे प्रीत है भारी
भाव विचार अलग न तुमसे
तुम गुमशुम हो हम गुमशुम से
बोल सको तो बोलो पहले
ना कुछ ढूँढ़ों रूप रुपहले
सबमें छद्म समागम बंधन
अन्तस्मन का अनतस संधन
रंध्र एक तुम मानो उसको
जिसको सबकुछ जानो जिसको
हम तो महिमा नाप मरेंगे
यह आलाप विलाप करेंगे
छद्म रूप में तुम मत ढूँढ़ों
तुम पढ़ लो सब मूरत अपनी
तुम गढ़ लो सब मूरत अपनी
हे बुड़बक हम आप सामान
करन बहादुर (नोयडा) 8459061112 , 9015151607
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