कवि,साहित्यकार,पत्रकार,संपादक (करन बहादुर)
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हिंदुओं
तुम्हारी,हिन्दी का
हो रहा है
चीर हरण
घुस पैठ
यह,अँगरेगी की
करने न देगी
किसी को वरण
जबकि-
आदि है यही
यह ही है श्रस्टी
संरचना
यह इंसान की
इसमे है-
सभ्यता की उत्कर्षटी
बनावट नही है
इसमे कोई
जागी हूई है
कभी भी न सोई
तुम भी न सोवो
अब जाग जाओ यारों
लुटने न दो
खुद को धिक्करो
हिला दो हिमालय
यह ताज
झूठा है
कौन कहता है
मर्द हूँ
जो दर्द पीता है
अरे! हो रहा है
हिन्दी का चीर हरण
फिर भी तू …..
जीता है !!
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